यह बछड़ों का एक घातक रोग है। इसमें मसूड़ों, ओंठो तथा पैरों में, खुरों के बीच के पफोले निकल आते हैं। एवं इनके फूटने पर जिह्वा तथा पैरों में घाव हो जाते हैं। बछड़ों में इस रोग से मृत्यु हो जाती है। विदेशी तथा संकर बछड़े इस रोग के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील होते हैं तथा इनमें मृत्यु दर भी अधिक होती है।
कारण– एफ. एम. डी. का एक। अत्यन्त सूक्ष्म, पिकोरना (Picorna) समूह के विषाणु द्वारा उत्पन्न होता है। यह विषाणु (Virus) गोलाकार तथा इसका व्यास 7-21 मिलीमाइक्रान होता। है। इस विषाणु के सात प्रकार होते हैं।
रोग का संक्रमण-रोग का संचरण मुख्य रूप से वायु , दूषित पानी पीने, दूषित भोजन, सम्पर्क,, रोगी पशुओं तथा पदार्थों द्वारा होता है। शव-परीक्षण-मृत बछड़ों का शव-परीक्षण (P-M.) करने पर जीभ एवं मसूड़ों पर जलस्फोटीय (Vesicular) लीजन्स मिलती है। कुछ अंगों में रक्ताधिक्य तथा कुछ अंगों में क्षतियाँ (Lesions) पायी जाती है। लक्षण एक दृष्टि में सुस्ती एवं तेज ज्वर खाना-पीना छोड़ना।जिह्वा के तल, मसुड़ों, ओठों तथा पैरों में खुरो के बीच में फफोले। फफोलों में पानी जैसा तरल पदार्थ। फूटने पर जिह्वा तथा पैरों में घाव घावो से खून निकलता है।घावों के कारण बछड़ा कुछ खाना-पीना नहीं। करता है बछड़े लँगड़े हो जाते हैं। अंत में मृत्यु या पुनः स्वस्थ हो जाते हैं। निदानात्मक लक्षण तथा चिह्न-रोग की पहिचान विशिष्ट प्रकार के लक्षणों, शव-परीक्षण, लीजन्स, विषाणु के पृथक्कीकरण (Isolation) तथा टाइपिंग /Tvping) आदि से किया जाता है।पशु मर जाता है या पुनः स्वस्थ हो जाता है यह रोग 15-20 दिन तक चलता है।
उपचार (Treatment)
रोगी पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिये। मुँह की सफाई गुनगुने पानी में 2% फिटकरी (Alum) या बोरिक एसिड अथवा नमक डाल कर करें।खुरों को गुनगुने पानी में फिनाइल या लाइसोल या बेटाडीन डाल कर धोयें। ।बुखार की स्थिति में मैगसल्फ 20 ग्राम, कल्मीशोरा (पोटाश नाइट्रेट) 2 ग्राम पानी में मिलाकर दिन में 2 बार पिला सकते पेनीसिलीन, ट्रेटासाइक्लीन अथवा एम्पीसिलीन द्वितीयक संक्रमण के निराकरण हेतु दे सकते है। अथवा टैरामाइसीन । टिकिया दिन में 2 बार। रोग बचाव के उपाय-रोग बचाव हेतु निम्न उपाय किये जाते हैं-
खुरपका-मुँहपका टीका (FE M.D. Vaccine)
याद रहे-• प्रथम बार लगवाये गये टीके से 6-9 माह तक प्रतिरक्षा (Immunity) उत्पन्न होती है। अतः समय-समय पर टीका लगवाना आवश्यक होता है।इन्हें रोग प्रकोप से पूर्व ही लगवाया जाता है।अन्य उपाय-संक्रामक रोगों के बचाव के सामान्य उपायों द्वारा रोग-निरोध करना चाहिये।